बढ़े हुए विदेशी कर्ज ने कच्चे तेल की कीमतों को लेकर बढ़ाई चिंता
देश का विदेशी कर्ज बढ़कर जून 2019 के अंत तक 557.4 अरब डॉलर पर पहुंच गया है. भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार मार्च 2019 को समाप्त तिमाही के बाद इसमें 14.1 अरब डॉलर की वृद्धि हुई है. ऐसे में आशंका जताई जा रही है वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमतें बढ़ने पर भारतीय अर्थव्यवस्था पर व्यापक नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है.
रुपया एवं अन्य विदेशी मुद्राओं के मुकाबले डॉलर के कमजोर होने से इसके मूल्यांकन में 1.7 अरब डॉलर की कमी आई है. मूल्यांकन प्रभाव को यदि अलग कर दिया जाये तो मार्च 2019 के बाद जून 2019 अंत तक कुल विदेशी कर्ज में वृद्धि 14.1 अरब डॉलर के बजाय 12.4 अरब डॉलर ही होती.
विदेशी कर्ज में यह वृद्धि पिछले पांच सालों में सर्वाधिक है.
रिजर्व बैंक की विज्ञप्ति के अनुसार कुल विदेशी कर्ज में सबसे अधिक 38.4 प्रतिशत हिस्सेदारी वाणिज्यिक (कंपनियों) ऋण की है. इसके बाद प्रवासियों के जमा की हिस्सेदारी 24 प्रतिशत और लघु अवधि के व्यापार ऋण की हिस्सेदारी 18.7 प्रतिशत है.
जून 2019 के अंत तक देश का दीर्घावधि विदेशी ऋण 447.7 अरब डॉलर रहा. यह मार्च 2019 के मुकाबले 12.8 अरब डॉलर अधिक है.
वहीं जून अंत तक कुल विदेशी ऋण में लघु अवधि ऋण की हिस्सेदारी घटकर 19.7 प्रतिशत पर आ गयी जो मार्च 2019 के अंत तक 20 प्रतिशत थी. विदेशी मुद्रा भंडार के अनुपात में लघु अवधि का ऋण जून अंत तक 25.5 प्रतिशत रह गया जो मार्च 2019 के अंत तक 26.3 प्रतिशत पर था.
जून 2019 अंत तक सरकारी और गैर-सरकारी क्षेत्र दोनों का विदेशी ऋण बढ़ा है.
देश के विदेशी ऋण में डॉलर नामित ऋण की हिस्सेदारी सर्वाधिक है. जून अंत तक इसकी हिस्सेदारी 51.5 प्रतिशत रही. इसके बाद रुपये में मिले विदेशी ऋण की हिस्सेदारी 34.7 प्रतिशत, येन की 5.1 प्रतिशत, विशेष आहरण अधिकार की 4.7 प्रतिशत और यूरो रिण कि भागीदारी 3.2 प्रतिशत रही.
अर्थशास्त्रियों का मानना है कि विदेशी कर में इस बढ़ोतरी की वजह पिछले एक से डेढ़ साल में बैंकों की ऋण देने की क्षमता में आई कमी है.
जून 2010 में विदेशी मुद्रा भंडार के अनुपात में विदेशी कर्ज 106 प्रतिशत था. इस तरह विदेशी मुद्रा भंडार ने विदेशी कर्ज को पूरी तरह से कवर कर लिया था. जून 2014 में यह अनुपात 69.7 प्रतिशत तक गिर गया. अगले तीन सालों में इसमें सुधार आया और जून 2017 में यह अनुपात 80 प्रतिशत रहा. लेकिन जून 2019 में एक बार फिर से गिरकर यह 76.7 प्रतिशत हो गया.
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि कच्चे तेल की कीमतें स्थिर रहती हैं तो बढ़ा हुआ विदेशी कर्ज चिंता की बात नहीं है. हालांकि, उनका यह भी मानना है कि यदि कच्चे तेल की कीमत प्रति बैरल 85 से 90 डॉलर तक जाती है तो यह चिंता का विषय होना चाहिए.