आलोक वर्मा को पद से हटाये जाने पर पूर्व चीफ जस्टिस ने उठाए सवाल


The former Chief Justice raised questions on the removal of Alok Verma from the post

  PTI

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर ने आलोक वर्मा को सीबीआई के निदेशक के पद से हटाये जाने में अपनाई गई प्रक्रिया की आलोचना की है. पीएम मोदी की अध्यक्षता में गठित उच्चाधिकार चयन समिति ने यह फैसला लिया था. अंग्रेजी अखबार द टेलीग्राफ को दिए साक्षात्कार में पूर्व चीफ जस्टिस ने कहा कि समिति के समक्ष आलोक वर्मा को अपनी बात रखने का मौका नहीं देना न्याय के प्राकृतिक सिद्धांतों के खिलाफ है.

नौ और दस जनवरी को दो बैठकों के बाद समिति ने आलोक वर्मा को पद से हटा दिया था. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में गठित उच्चाधिकार चयन समिति में जस्टिस एके सिकरी और कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे शामिल हैं. कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने आलोक वर्मा को पद से हटाये जाने के विरोध में मत दिया था.

चयन समिति में आलोक वर्मा को अपना पक्ष रखने का मौका नहीं दिया गया था.

जस्टिस एके पटनायक की अगुवाई में सीवीसी(सेन्ट्रल विजिलेंस कमीशन) ने आलोक वर्मा पर भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच किया है. जस्टिस पटनायक ने इंडियन एक्सप्रेस को दिए साक्षात्कार में कहा था कि आलोक वर्मा के खिलाफ भ्रष्टाचार का कोई मामला नहीं मिला है.  उन्होंने कहा था कि प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली उच्च स्तरीय समिति ने आलोक वर्मा को सीबीआई निदेशक के पद से बेहद जल्दबाजी में हटाया है. जस्टिस पटनायक के अनुसार, उन्होंने सुप्रीम कोर्ट को लिखकर यह स्पष्ट किया है कि उन्होंने सीवीसी जांच की सिर्फ निगरानी की है. सीवीसी जांच में जो भी बातें सामने आई हैं, वे उनका निष्कर्ष नहीं है. 

सरकार के फैसले पर जस्टिस टीएस ठाकुर ने कहा कि चयन समति के समक्ष आलोक वर्मा को बोलने का मौका दिया जाना चाहिए था.

उन्होंने कहा कि आलोक वर्मा को सीवीसी के समक्ष बोलने का मौका देने के बाद भी रिपोर्ट उनके खिलाफ आया है, हालांकि यह एक जांच रिपोर्ट ही है.

जस्टिस टीएस ठाकुर ने कहा, “हम मानकर चलते हैं कि सीवीसी ने जस्टिस एके पटनायक की अगुवाई में जांच किया होगा. और आलोक वर्मा को अपना पक्ष रखने का मौका मिला होगा. बावजूद सीवीसी की रिपोर्ट वर्मा के खिलाफ है ”

उन्होंने कहा, “आलोक वर्मा को अपनी बात रखने का मौका दिया गया, सीवीसी ने इस आधार पर रिपोर्ट बनाया है और रिपोर्ट आलोक वर्मा के खिलाफ है. इसका अर्थ है कि वर्मा की दलील को अस्वीकृत कर दिया गया है. अब इसी रिपोर्ट को कोर्ट में पेश किया जाता है. सुप्रीम कोर्ट इसकी सत्यता पर कोई टिप्पणी नहीं करता है.  कोर्ट ने इसके बारे में कुछ नहीं कहा है.  पूरे मामले को उच्च अधिकार प्राप्त कमेटी(चयन समिति) को भेजा गया है. ”

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उन्होंने कहा “अगर आप किसी व्यक्ति के खिलाफ किसी रिपोर्ट के आधार पर फैसला लेते हैं तो उस रिपोर्ट को व्यक्ति के साथ जरूर साझा की जानी चाहिए.  रिपोर्ट को आरोपी के समक्ष रखे बिना और उनकी दलील सुने बिना आप कोई भी फैसला नहीं ले सकते हैं.”

आलोक वर्मा पर एक व्यापारी से घूस लेने सहित मुख्य रूप से 11 आरोप लगे हैं. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक सीवीसी ने उनके खिलाफ कोई भी ठोस सबूत प्रस्तुत नहीं कर पाया है. सीवीसी ने कहा है कि वर्मा का व्यवहार  ‘संहेदास्पद’ रहा है और इसके लिए और विस्तृत जांच की जरुरत है.

मुख्य 11 आरोपों में चार की जांच जारी है जबकि एक आरोप गलत साबित हुआ है. प्रारंभिक जांच में चार आरोपों को सही पाया गया है. कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे इस मामले में कहते हैं कि इन चार आरोपों पर जांच अपने आखिरी नतीजे पर नहीं पहुंची है और इसमें पैसे का लेनदेन शामिल नहीं है.


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