जर्मनी: हजारों प्रदर्शनकारियों ने कोयला खदान का घेराव किया
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पर्यायवरण के मुद्दों से जुड़े एक प्रतिरोध समूह ‘एंडे गेलेंडे (अभी या कभी नहीं)’ ने जर्मनी के राइनलैंड में स्थित गार्जवीलर कोयला खदान के पास विरोध प्रदर्शन के लिए कैंप लगा रखा है.
गार्जवीलर कोयला खदान को चलाने वाली कंपनी का नाम आरडब्लूई है. यह कंपनी लिग्नाइट (एक प्रकार का कोयला) का उत्पादन करती है. इसके साथ ही यह बिजली और प्राकृतिक गैस की भी सप्लाई करती है.
कोयला खदान के बाहर कैंप लगाए प्रदर्शनकारियों का कहना है कि पूरे यूरोप से 40 बसों में हजारों की संख्या में प्रदर्शनकारी यहां आ रहे हैं. उनका कहना है कि 28 जून से प्रदर्शन शुरू होगा और जितना ज्यादा हो सकेगा, उतना लंबा चलेगा.
यह समूह इस कोयला खदान को बंद करने की मांग कर रहा है. इसके साथ ही समूह समाज और अर्थव्यवस्था में भी संस्थागत बदलाव चाहता है.
वहीं आरडब्लूई कंपनी ने प्रदर्शनकारियों को ट्विटर पर जवाब देते हुए उनकी सुरक्षा के बारे में चिंता जताई है. कंपनी ने प्रदर्शनकारियों को बिजली के झटकों, खतरनाक मोड़ों और रेलवे के उपकरणों से सुरक्षा बरतने के लिए हिदायत दी है.
कंपनी ने लिखा है, “वो सभी लोग जो राइनिश लिग्नाइट इलाके में आ रहे हैं, आप सभी की सुरक्षा हमारे लिए महत्वपूर्ण है. इसलिए हमने कुछ वीडियोज के जरिए आपके लिए कुछ जानकारी इकट्ठा की है.”
वहीं प्रदर्शनकारी समूह ने भी विरोध प्रदर्शन की योजना तैयार करते समय सुरक्षा पर बहुत जोर दिया है. समूह ने अपने नियोजित क्रिया-कलापों के लिए ट्रेनिंग कक्षाएं भी चलाई हैं. समूह लोगों को इकट्ठा कर कोयला खदान का कामकाज पूरी तरह ठप्प करना चाहता है. इस तैयारी के बीच समूह ने कहा है कि यह पूरी तरह से अहिंसक विरोध प्रदर्शन है और यह उनके लिए सबसे जरूरी बात है कि प्रत्येक मानवाधिकार की रक्षा हो.
इस पूरे मामले के बारे में बात करते हुए ग्रीन पार्टी के सांसद जॉर्ज कोसलर कहते हैं कि इस प्रकार के विरोध प्रदर्शन समूह पिछले कुछ समय में ही विकसित हुए हैं और जन असहयोग का प्रतीक बन गए हैं. उन्होंने कहा कि केवल पिछले साल ही सरकार ने उनकी मांगों पर ध्यान देना शुरू किया है, लेकिन ये उन लोगों के लिए काफी नहीं है.
इससे पहले भी अक्टूबर 2018 में इस समूह और आरडब्लूई कंपनी का आमना-सामना हो चुका है. तब उन्होंने हैमबैक जंगल के पास स्थित एट्जवीलर कोयला खदान के पास घेराव किया था. पुलिस उनको तितर बितर करने आई थी, तब बहुत से प्रदर्शनकारियों ने खुद को पेड़ों से बांध लिया था.