मोदी सरकार के आलोचकों को आर्थिक सलाहकार परिषद में जगह नहीं


two advisers who criticized government policy is missing from economic council to PM

 

सरकार ने विवेक देवराय की अध्यक्षता में ही एक बार फिर प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसी-पीएम) का पुनर्गठन किया है. जबकि ईएसी-पीएम में राथिन राय और शमिका रवि को जगह नहीं दी गई है.

ईएसी-पीएम प्रधानमंत्री को अर्थव्यवस्था संबंधी सुझाव देने वाली स्वायत्त संस्था है. राथिन रय और शमिका रवि मोदी सरकार की नीतियों की आलोचना करते रहे हैं.

राय नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनांस एंड पॉलिसी के डायरेक्टर हैं. वह राजकोषीय घाटा को लेकर सरकार की नीतियों पर सवाल उठा चुके हैं.

शमिका रवि ब्रुकिंग इंडिया में डायरेक्टर ऑफ रिसर्च हैं. उन्होंने ट्वीट कर आर्थिक सुस्ती के लिए पूर्व वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी के द्वारा नए कानून के तहत पिछले भुगतान पर टैक्स (रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स) लागू करने और सुप्रीम कोर्ट के कोल ब्लॉक आवंटन को रद्द करने के फैसले को जिम्मेदार ठहराया था.

ईएसी-पीएम का पुनर्गठन दो साल के लिए किया गया है.

रतन पी वाटल प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य सचिव बने रहेंगे.

25 सितंबर को जारी एक आधिकारिक बयान में कहा गया है कि सरकार ने 26 सितंबर, 2019 से दो साल की अवधि के लिए ईएसी-पीएम का पुनर्गठन किया है.

ईएसी-पीएम में दो पूर्णकालिक सदस्यों के अलावा दो अंशकालिक सदस्य होंगे. अभी इस परिषद में तीन अंशकालिक सदस्य हैं. आशीमा गोयल अंशकालिक सदस्य बनी रहेंगी. एक अन्य नए अंशकालिक सदस्य साजिद चिनॉय होंगे.

राय ने पूर्व आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन की तरह डॉलर के दबदबा वाले सॉवरेन बॉन्ड लेने के फैसले पर दोबारा विचार करने का आग्रह सरकार से किया था.

राय ने ऐसा कोई भी कदम उठाने से पहले विस्तृत रूप से विचार-विमर्श करने की सलाह दी थी जिससे डॉलर की तुलना में रुपये का मूल्य कम होता हो और एक कर्ज को चुकाने के लिए दूसरा कर्ज लेने की नौबत आती हो. अर्थशास्त्रियों के एक बड़े समूह का मानना है कि फॉरेन सॉवरेन बॉन्ड की वजह से डॉलर के मुकाबले रुपये का मूल्य घटता है और देश कर्ज के चक्र में फंस जाता है.

राय ने कहा कि वह आर्थिक स्वतंत्रता की वजह से ऐसे किसी भी प्रस्ताव को लेकर चिंतित हैं.

उन्होंने कहा कि राजशाही फरमान के बजाय इस मामले में व्यापक रूप से सार्वजनिक परामर्श और विचार-विमर्श करने की जरूरत है.

एक टेलीविजन इंटरव्यू में उन्होंने सरकार में महत्वपूर्ण पदों पर बैठे लोगों पर बिना अर्थशास्त्र की समझ के फैसले लेने को लेकर आलोचना की थी.

राय ने कहा था कि भारत एक ‘मौन राजकोषीय संकट’ की ओर बढ़ रहा है और टैक्स संग्रह लक्ष्यों के पूरा नहीं होने के बाद सरकार को मध्यम समय अंतराल के लक्ष्यों  को लेकर श्वेत पत्र जारी करना चाहिए.

सरकार के राजकोषीय घाटा को जीडीपी के 3.4 फीसदी पर लाने के लक्ष्य पर सवाल उठाते हुए उन्होंने पूछा था कि टैक्स और जीडीपी अनुपात में कमी के बाद यह कैसे संभव हो पाएगा?


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