टीम इंडिया में कोच-कप्तान विवाद की पहेली कब सुलझेगी?
हाल ही में बीसीसीआई ने कपिल देव के नेतृत्व वाली क्रिकेट एडवाइजरी कमेटी (सीएसी) को भारतीय क्रिकेट टीम का नया मुख्य कोच चुनने की खुली छूट दी है और इस फैसले पर आगे बढ़ने को कहा है, जिससे नए भारतीय कोच की अटकलें तेज होने लगी हैं.
बताया जा रहा है कि सीएसी अगस्त के तीसरे हफ्ते तक अपना काम पूरा कर लेगी और भारतीय टीम को नया मुख्य कोच मिल जाएगा.
इंग्लैंड में 2019 के विश्व कप सेमीफाइनल में न्यूजीलैंड से मिली 18 रन की हार के बाद टीम इंडिया विश्व कप से बाहर हो गई थी. इस हार के बाद और सेमीफाइनल में टीम के प्रदर्शन पर कई सवाल खड़े हुए, किसी ने टीम के प्रदर्शन को कोसा तो किसी ने कोच रवि शास्त्री और कप्तान विराट कोहली पर मनमानी का आरोप लगाया और हार का जिम्मेदार ठहराया. इस सब के बीच भारतीय क्रिकेट नियंत्रण बोर्ड ने भी कोच पद और सपोर्ट स्टाफ के लिए नए आवेदन मंगाए थे.
किसी बड़े टूर्नामेंट में टीम की हार के बाद टीम मैनेजमेंट में मचने वाली ये उथल पुथल भारतीय क्रिकेट के लिए कोई नई बात नहीं है और ये भी कोई पहली बार नहीं है कि क्रिकेट प्रेमियों में टीम में सब कुछ ठीक न होने की चर्चा और बहस जोरों पर है, इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि टीम में चल रही उठापठक का असर तीन अगस्त से शुरू होने वाले वेस्टइंडीज दौरे पर भी पड़ेगा. हालांकि, हमें ये भी मानना होगा कि बीते कुछ सालों में भारतीय फैन्स की परिपक्वता का स्तर बढ़ा है, जिस तरह 2015 और 2019 के दोनों विश्व कप में टीम के सेमीफाइनल में ही बाहर होने के बाद क्रिकेट फैन्स टीम के साथ खड़े दिखाई दिए वो वाकई काबिले तारीफ है और बढ़ती परिपक्वता का एक उदाहरण है वरना उदाहरण वो भी हैं जब भारतीय टीम 1996 और 2007 के विश्व कप से बाहर हुई थी.
2000 के बाद से भारतीय क्रिकेट में कोच और कप्तान का तालमेल हमेशा चर्चाओं और बहसों का मुख्य विषय रहा फिर चाहे वो तालमेल अच्छा हो या बुरा. इस चर्चा के गर्म होने और बढ़ने की इकलौती वजह थी. भारतीय क्रिकेट टीम के लिए विदेशी कोचों का आना. विदेशी कोचों के आने का ये सिलसिला शुरू होता है 2000 में न्यूजीलैंड के पूर्व कप्तान और बल्लेबाज जॉन राइट के आने से जिन्होंने (2000-2005), 5 सालों तक भारतीय क्रिकेट टीम को कोचिंग दी. जॉन राइट का कार्यकाल भारतीय क्रिकेट टीम के साथ किसी भी कोच का अभी तक का सबसे लम्बा कार्यकाल है.
27 वर्षीय सौरव गांगुली को 1999 में टीम का नया कप्तान चुना गया था और जॉन राइट भी इसी दौरान बतौर कोच भारतीय टीम से जुड़े थे. कप्तान गांगुली और कोच राइट का कार्यकाल लगभग बराबर ही रहा. 1999-2000 के सत्र में नए कोच और नए कप्तान के साथ क्रिकेट फैन्स भारतीय टीम का भविष्य संवरने के कयास लगाने लगे और ये उम्मीद की जाने लगी कि भारतीय टीम 1999-2000 के ही फिक्सिंग स्कैंडल का दंश भुलाकर बेहतर प्रदर्शन करेगी. कोच जॉन राइट और कप्तान सौरव गांगुली ने भी क्रिकेट फैन्स को निराश नहीं किया.
गाांगुली और राइट के कार्यकाल में टीम पिछले सारे विवादों को भुलाने लगी और बेहतरीन प्रदर्शन करने लगी, 2000 से 2005 तक टीम ने शानदार खेल दिखाया, 2001 की घरेलू टैस्ट सीरीज़ में ऑस्ट्रेलिया को हराया जिसमें कोलकाता टैस्ट की ऐतिहासिक जीत भी शामिल थी, जब भारत ने फॉलोऑन खेलते हुए वीवीएस लक्ष्मण की 281 रनों की पारी की बदौलत ऑस्ट्रेलिया को हराया. इसके बाद ऑस्ट्रेलिया दौरे पर टीम ने 4 टैस्ट की सीरीज़ को 1-1 से बराबर किया, 2002 में नैटवैस्ट सीरीज़ के फाइनल में इंग्लैण्ड के खिलाफ़ मिली जीत और चैम्पियन्स ट्रॉफ़ी में श्रीलंका के साथ संयुक्त विजेता रहना भी गांगुली और राइट के बेहतरीन तालमेल का उदाहरण थे. इसके बाद दक्षिण अफ्रीका में हुए विश्व कप में भी शानदार खेल दिखाते हुए फाइनल तक का सफर तय किया.
गांगुली और राइट का कार्यकाल कोच और कप्तान के तालमेल का एक बेहतरीन उदाहरण था क्योंकि जॉन राइट ने भारतीय टीम का कोच होने के लिए काफी ऊंचे मापदंड स्थापित कर दिए थे लेकिन इसके बाद आया कोच-कप्तान विवाद का एक ऐसा दौर जिसने भारतीय क्रिकेट को पूरी तरह हिला कर रख दिया. शायद ही कोई क्रिकेट प्रेमी हो जो गांगुली-चैपल विवाद से परिचित न हो. 2005 में जॉन राइट का अनुबंध खत्म होने के बाद पूर्व ऑस्ट्रेलियाई कप्तान और बल्लेबाज ग्रैग चैपल ने भारतीय टीम के कोच का पद संभाला. 2005 के आखिर में जिम्बाव्वे दौरे पर कप्तान सौरव गांगुली और कोच ग्रैग चैपल के बीच विवाद की सुगबुगाहट तेज होने लगी जब चैपल ने गांगुली को कप्तानी छोड़कर अपनी बल्लेबाजी पर ध्यान देने को कहा जिससे खफ़ा होकर गांगुली दौरा बीच में ही छोड़कर भारत वापस आ गए. गांगुली के बाहर होते ही और गांगुली की आलोचना करते हुए बीसीसीआई को चैपल की ओर से किए गए ईमेल के लीक होने से ये विवाद तूल पकड़ने लगा.
गांगुली के शहर कोलकाता में लोग भारतीय कप्तान के समर्थन में सड़कों पर उतर आए, कोलकाता एयरपोर्ट पर एक क्रिकेट फैन का कोच ग्रैग चैपल को थप्पड़ मारना इस विवाद की गर्माहट को साफ जाहिर कर रहा था. मीडिया में भी ये मामला जोर शोर से उछलने लगा. टीम में फूट की खबरें सामने आने लगी. टीम के कई खिलाड़ियों ने खुले तौर पर गांगुली का समर्थन किया. हालांकि बाहर होने के लगभग एक साल बाद 2006 के आखिर में दक्षिण अफ्रीका दौरे पर गांगुली ने टीम में वापसी की लेकिन अब वो कप्तान नहीं थे, अब कप्तान थे राहुल द्रविड.
इस विवाद का टीम के प्रदर्शन पर काफी गहरा असर पड़ा, टीम एक के बाद एक कई सीरीज हारी और आखिर में इस विवाद का खामियाजा भारतीय टीम को 2007 के विश्व कप से पहले ही दौर में बाहर होकर चुकाना पड़ा. 2007 में चैपल को भारतीय टीम के कोच पद से मुक्त किया गया. इसके बाद एक साल तक कोई टीम का कोच नहीं रहा.
2008 में तस्वीर पूरी तरह बदल चुकी थी. युवा कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी की कप्तानी में 2007 का टी-20 विश्व कप जीतकर टीम पुराने विवादों को भुला चुकी थी. इसके बाद ऑस्ट्रेलिया में कॉमनवैल्थ बैंक सीरीज जीतने के बाद टीम उत्साह और आत्मविश्वास से लबरेज थी. अब बारी थी टीम के लिए किसी नए कोच की नियुक्ति की. इस कमी को पूरा किया पूर्व दक्षिण अफ्रीकी बल्लेबाज गैरी कर्स्टन ने. अब कोच-कप्तान तालमेल के फ्लोर पर टेस्ट की बारी थी नए कोच गैरी कर्स्टन और नए कप्तान एमएस धोनी की.
ये कहना कोई गलत नहीं होगा कि जो विरासत सौरव गांगुली और जॉन राइट के समय में अधूरी छूट गई थी उसे एमएस धोनी और गैरी कर्स्टन ने वहीं से संभाला, जो थोड़ी बहुत कमियां गांगुली-राइट के दौर में रह गई थीं उन्हें धोनी-कर्स्टन की जोड़ी ने खत्म किया और सबसे बेहतरीन बात जो धोनी-कर्स्टन के उम्दा तालमेल को दर्शाती है वो ये कि टीम ने फाइनल जीतने शुरू किए जो कि टीम की एक कमजोर कड़ी थी.
2011 की विश्व कप जीत का श्रेय धोनी-कर्स्टन की जोड़ी को ही जाता है. गैरी कर्स्टन के पद छोड़ने के बाद उनकी जगह ली जिम्बाव्वे के पूर्व बल्लेबाज डंकन फ्लेचर ने, एमएस धोनी और डंकन फ्लेचर के बीच का तालमेल भी काफी बेहतरीन था.
2015 में फ्लेचर का कोच के तौर पर अनुबंध खत्म होने के बाद रवि शास्त्री को टीम का कोच अंतरिम कोच बनाया गया, शास्त्री के एक साल तक कोच रहने के बाद 2016 में अनिल कुंबले कोच के तौर पर नियुक्त किए गए, कुंबले के कोच बनने के कुछ ही दिनों में टेस्ट कप्तान विराट कोहली से उनकी अनबन की खबरें सामने आने लगी जो कि टीम के लिए किसी भी नजरिए से बेहतर नहीं थी. मीडिया में ये भी खबरें आने लगी कि टेस्ट कप्तान विराट कोहली रवि शास्त्री को कोच के तौर पर ज्यादा पसंद करते हैं और अनिल कुंबले का अनुशासन से उन्हें परेशाानी होती है.
जनवरी 2017 में धोनी के वनडे से भी कप्तानी छोड़ने के बाद दोनों प्रारूपों की कप्तानी विराट कोहली को सौंप दी गई. कोच कुंबले और कप्तान कोहली के बीच विवाद की तमाम खबरों के बाद बीसीसीआई ने कोच पद के दोबारा आवेदन मंगाए और इसके बाद जो हुआ वो सबने देखा. कप्तान कोहली की कोच के तौर पर पहली पसंद रवि शास्त्री को दोबारा टीम का कोच बनाया गया.
कोहली-शास्त्री के बीच कप्तान और कोच के तौर पर एक बेहतरीन तालमेल कायम होने लगा, वो और बात है कि इसी दौरान टीम 2017 की चैम्पियन्स ट्रॉफी में हारी और उसके अलावा भी कई सीरीज में टीम को हार का सामना करना पड़ा. हालिया मामला 2019 विश्व कप का है जब टीम सेमीफाइनल में न्यूजीलैंड के हाथों अप्रत्याशित तरीके से हार कर बाहर हो गई. इस हार के बाद एक बार फिर कोच और कप्तान की भूमिका पर सवाल उठने लगे.