सर्वाधिक बेरोजगारी दर से घरेलू कर्ज पर पड़ा नकारात्मक प्रभाव
करदाता जहां खराब करों से जूझ रहे हैं और बेरोजगारी दर 45 सालों के सर्वाधिक स्तर पर है, ऐसे में क्रेडिट विश्लेषक घरेलू कर्जों में लगातार पनप रहे तनाव पर नजर बनाए हुए हैं. दशकों की सर्वाधिक बेरोजगारी दर ने घरेलू कर्ज पर बहुत ही नकारात्मक प्रभाव डाला है.
कॉरपोरेट कर्ज के इतर घरेलू कर्ज को बैंक अपने मुनाफे के लिए अच्छा मानते आए हैं. लेकिन अर्थव्यवस्था में जारी मंदी और बैंकों की कर्ज देने की खस्ता हालत के चलते, विशेषज्ञ सार्वजनिक रूप से उपलब्ध डेटा के आधार पर यह चेतावनी दे रहे हैं कि व्यक्तियों द्वारा लिए जाने वाले कर्ज में लगातार कमी आ रही है.
फिच रेटिंग्स में फाइनेशिंयल इन्सटीट्यूशन के निदेशक शाश्वत गुप्ता के अनुसार, “निश्चित तौर पर खुदरे कर्ज में लगातार कमी आ रही है. इस क्षेत्र में तनाव बढ़ता जा रहा है. यहां से अर्थव्यवस्था जिस दिशा में जाएगी, उससे तय होगा कि इन कर्जों के भुगतान ना होने की दर में वृद्धि होती है अथवा नहीं.”
कमजोर उपभोग से जूझ रही अर्थव्यवस्था में तेजी लाने के लिए सरकार ने पिछले हफ्ते यात्री वाहनों की खरीद में छूट देने और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के पुन: पूंजीकरण जैसे कदम उठाए हैं. करों का भुगतान ना होने से भारत के गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थानों पर फंडिंग का दबाव बढ़ा है. ये संस्थान ऐतिहासिक रूप से उपभोक्ता कर प्रदान करने के प्रमुख स्रोत रहे हैं. फिच के अनुसार कर का भुगतान ना होने से इनकी कर देने की क्षमता घटी है और इससे उपभोग पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है.
जून तिमाही में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में गैर-निष्पादित खुदरे कर्ज में 5.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, पिछली तिमाही में यह वृद्धि 4.8 प्रतिशत थी. स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को देश के सबसे बड़े कर्जदाता के रूप में जाना जाता है. हालांकि, बैंक ने यह भरोसा जताया है कि इस तिमाही में वह इस स्थिति पर काबू पा लेगा.
मुंबई स्थित असेट मैनेजमेंट कंपनी में कर निवेश के मुख्य अधिकारी द्विजेंद्र श्रीवास्तव ने कहा, “भारतीय अर्थव्यवस्था की हालत अगर और खराब होती है तो उपभोक्ता करों के भुगतान में और दिक्कत आएगी. भारत में व्यवसायों की हालत खराब होती जा रही है. इससे बेरोजगारी और अधिक बढ़ सकती है. बेरोजगारी बढ़ने से कर भुगतान की क्षमता में भी और कमी आएगी.”