आज़ाद पर इल्ज़ाम
‘हिंदू राष्ट्रवादी विद्वानों’ को दरकिनार करने के लिए आजाद को दोषी ठहराना हास्यास्पद है।
राज एक्सप्रेस
आज का दिन ऐसा रहा जैसा कोई और नहीं।
लेकिन मुझे कल से शुरू करना चाहिए।
कल मैंने 15 अगस्त के मौक़े से स्कूल फॉर डेमोक्रेसी (एसएफडी) द्वारा शुरू की गई ‘पैगाम ए आजादी’ नामक एक श्रृंखला पर बात की थी. हिन्दुस्तान में आज़ादी की शुरुआत आज़ाद से ही होती है.क्योंकि 1912 में जबसे आज़ाद ने जंग ए आज़ादी में हिस्सा लेना शुरू किया था उस वक़्त हिन्दुस्तान का कोई बड़ा व्यक्तित्व इस आज़ादी की लड़ाई का उस वक़्त हिस्सा नहीं था। इसलिए मौलाना आज़ाद की जीवनीकार होने के नाते एसएफडी ने मुझे मौलाना अबुल कलाम आज़ाद के बारे में बात करने के लिए आमंत्रित किया।
आज सुबह जब मैं सो कर उठी और इंडियन एक्सप्रेस का फ्रंट पेज पढ़ा तो तो मुझे एक अलग ही हकीकत से रूबरू होना पड़ा। सीबीआई के पूर्व निदेशक नागेश्वर राव ने अपने ट्वीट में घोषणा की, कि आज़ाद एक सांप्रदायिकतावादी थे, जिन्होंने इस्लामी शासन की रक्षा के लिए हिंदू धर्म को क्षति पहुंचाया है।
मौलाना आज़ाद पर मेरी किताबों में इस झूठ को नाकाम करने के लिए एक हज़ार तर्क हैं। आजाद के भाषणों और लेखन, उनके अनुवाद और कुरान पर उनकी तफ़्सीर, उनके ऐतिहासिक संग्रह, सभी से ये साबित होता है कि ये ट्वीट सत्य को विकृत करने और निर्दोष, अतिसंवेदनशील और अतिविश्वासी जनता में ज़हर फैलाने के मक़सद से किया गया है।
मेरे पास पूछने के लिए कुछ आसान से सवाल हैं। क्या उन्होंने मौलाना के लेखन का एक भी शब्द पढ़ा है? उर्दू भले ही उनके बस का न हो, लेकिन आजाद के अनुवाद हिंदी और अंग्रेजी में उपलब्ध हैं। छात्र अभी भी कई भारतीय भाषाओं में उन पर काम कर रहे हैं क्योंकि वहाँ अभी भी बहुत कुछ सीखने और उससे आत्मसात करने के लिए है।
1912 में, चौबीस वर्षीय आजाद ने अपने साहित्यिक जीवन की शुरुआत की। उनका मुख्य उद्देश्य मुसलमानों को स्वतंत्रता संग्राम में हिंदुओं से जुड़ने के लिए प्रेरित करना था। उन्होंने श्याम सुंदर चक्रवर्ती और बारिन घोष जैसे युवाओं के नेतृत्व में गुरिल्ला आंदोलन ‘जुगंतर’ और ‘अनुशीलन’ में भाग लिया।
उन्हें देश भर में हिंदू मुस्लिम एकता के प्रेरक के रूप में जाना जाता था। 1923 में सबसे कम उम्र के कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में उन्होंने कहा कि “अगर फरिश्ता कोई स्वर्ग से उतरता है और मुझे 24 घंटे में स्वराज देता है इस शर्त पर कि मैं हिंदू मुस्लिम एकता का त्याग करता हूं, तो मैं मना कर दूंगा। स्वराज हमें जल्दी या बाद में मिल जायेगी; स्वराज की प्राप्ति में देरी भारत के लिए एक नुकसान होगी, लेकिन हिंदू मुस्लिम एकता का नुकसान पुरे मानवता के लिए नुकसान होगा।” यह जीवन भर उनका सुसंगत स्टैंड रहा। सभी प्लेटफार्मों से उन्होंने साझी संस्कृति की बात की जो भारत का आधार है। उन्होंने झूठे सपनों के प्रचार के लिए मुसलमानों और हिंदुओं को समान रूप से फटकारा कि वे एक दिन प्राचीन संस्कृतियों को वापस लाएंगे। उन्होंने कहा कि प्रकृति ने सदियों से इस साझी संस्कृति को अपने सांचे में ढाला है और उस पर अपनी मुहर लगाई है। उन्होंने कहा कि ये इतिहास का तर्क और तथ्य है। आइए हम अपने साझे भविष्य की नियति का निर्माण शुरू करें।
उन्होंने बिना किसी संदेह के कहा कि मुस्लिम लीग के गुमराह नेतृत्व द्वारा की गई गलतियों के परिणामस्वरूप भारतीय मुसलमानों का कितना बड़ा नुकसान हुआ है। उन्होंने मुस्लिमों से अपने हिंदू, सिख, ईसाई साथी देशवासियों के साथ सामान्य व्यवहार करने का आह्वान किया और मिल कर काम करने की सलाह दी। क्योंकि यही उनका क़ुरान उन्हें करने के लिए प्रेरित करता है। अपने क़ुरान के अनुवाद और तफ़्सीर में उन्होंने दुनिया के सभी प्रकट, आध्यात्मिक और धार्मिक ग्रंथों के बारे में लिखा; वेद उपनिषद, बाइबिल, तोरा। उन्होंने अपने पाठकों को याद दिलाया कि क़ुरान मानवता के मार्गदर्शन के लिए समय-समय पर भेजे गए एक लाख चौबीस हजार पैगम्बरों की बात करता है। इसलिए मुस्लिमों के लिए सभी धर्मों का सम्मान करना और उनकी श्रद्धा करना बहुत जरूरी है। 1912 से लेकर अपने जीवन के अंत तक उन्होंने मुसलमानों से सभी भारतीयों के साथ सामान्य व्यवहार करने के लिए कुरान का छंद उद्धृत किया।
उनकी दृष्टि भारतीय उपमहाद्वीप तक ही सीमित नहीं थी। दुनिया उनका कैनवास था। शिक्षा मंत्री के रूप में अपने एक भाषण में उन्होंने सीमाओं और सरहदों की अप्रासंगिकता का सुझाव दिया। उनके लिए दुनिया एक रंगी थी क्योंकि हम एक ही मानव जाति हैं’।
‘हिंदू राष्ट्रवादी विद्वानों’ को दरकिनार करने के लिए आज़ाद को दोषी ठहराना हास्यास्पद है। देश में सबसे महत्वपूर्ण शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना किसने की? आईआईटी, विज्ञान की अकादमियां, यूजीसी, ललित कला, संगीत नाटक और साहित्य अकादमी? भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद किसका मौलिक विचार था? महाभारत और रामायण का फारसी में अनुवाद किसने किया ताकि इस्लामी दुनिया भारत की गौरवशाली विरासत से अवगत हो सके?
यह सबसे दुखद दिन है जब सत्ता प्रतिष्ठान से एक व्यक्ति भारत के शिक्षा मंत्रियों के पहले बैच को सांप्रदायिक करार देता है, केवल एक कारण से; क्योंकि वे मुसलमान हैं। वह मौलाना आज़ाद के तीन उत्तराधिकारियों को एक ही झूठी जुबान में बोलने की बात करता है। डॉ. हुमायूँ कबीर, न्यायमूर्ति एम सी छागला, प्रो नूरुल हसन। एक ऐसे लोक सेवक पर जो सिर्फ मुसलमानों को बदनाम करने के लिए सोशल मीडिया पर झूठी भाषा का इस्तेमाल करता हो, भारतीयों का क्या भरोसा हो सकता है?
हमें बोलना ज़रूर चाहिए चाहे परिणाम कुछ भी हो। स्वतंत्रता आंदोलन के हमारे आइकॉन, महात्मा गांधी, पंडित नेहरू, मौलाना आज़ाद, सरदार पटेल के ने मुसलमानों को समान नागरिक के रूप में रहने और जीने के लिए प्रेरित किया। ताकि हम गरिमा के साथ और बिना किसी डर के रह सकें। फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ के शब्दों में, जिसे आज़ाद ने खुद स्वीकार किया होगा:
या ख़ौफ़ से दर-गुज़रें या जाँ से गुज़र जाएँ
मरना है कि जीना है इक बात ठहर जाए
डॉ. सैयदा हमीद लेखिका और समृद्ध भारत फाउंडेशन के ट्रस्टी हैं । रेयाज़ अहमद मुस्लिम विमेंस फ़ोरम के फ़ेलो हैं।