हलाल रिज़्क का मतलब किसान से पूछो!
“किसान से बड़ा दिल किसी का होता है क्या?” उन्होंने मेरी तरफ़ देख कर फिर वही बात दोहराई. “एक फ़सल कर पाते हैं हम लोग. सिर्फ़ एक. क्योंकि पानी नहीं है.” मुझे लगा कि मैं पूछूं कि पानी क्यों नहीं है. लेकिन जिस भाव से वो अपनी बात बताते जा रहे थे, उस लड़ी को छेड़ने को दिल ना किया.
“आजकल सभी को सब कुछ एकदम चाहिए, अभी-अभी.” उन्होंने इस बात पर कुछ ज़्यादा ही ज़ोर दिया. “लेकिन किसान साल भर इंतज़ार करता है. फिर बीज बोता है. मेहनत से उसे सींचता है. सपने देखता है. और कभी-कभी सब कुछ ठीक होते हुए भी फ़सल नष्ट हो जाती है.” ये कहकर वो थोड़ा रुक गए.
शायद उनकी आखों में बीते सालों की वो फ़सलें तैर गयीं जो कभी कट ना सकीं. “फिर?” जब वो काफ़ी देर तक कुछ ना बोले तो मैंने पूछा. “फिर क्या? 72 साल का ये बूढ़ा आदमी मज़दूरी के लिए निकल पड़ता है.” उन्होंने अपने पैर यूं फैलाये जैसे उन्हें अभी भी उन पर पूरा यक़ीन हो.
बुलाते हैं हमें मेहनतकशों के हाथ के छाले, चलो मुहताज के मुंह में निवाला रख दिया जाए. रजा मौरान्वी की ये पंक्तियां कितनी सटीक हैं इन मेहनतकश हाथों के लिए. सवाल कौंधता है दिमाग में, अन्नदाता की इस हालत का जिम्मेदार कौन है? क्या कभी सुधरेगी ये व्यवस्था? असली हकदारों तक कब पहुंचेगा उनका हक?
उनके पैरों ने कैमरे को हल के पीछे दौड़ने की सारी कहानी बयान कर दी. कुछ देर चुप रहने के बाद वो बोले, “लेकिन अगले साल वो फिर उसी उम्मीद के साथ फ़सल बोता है.” तीसरी बार फिर उन्होंने वही बात दोहराई- “किसान से बड़ा दिल किसी का होता है क्या?”
सभी तस्वीरें- गुरमीत सिंह सप्पल