जयपाल सिंह मुंडा: संविधान सभा में आदिवासियों की बुलंद आवाज
दिसंबर 1946 में जब भारत के संविधान सभा की बैठक में मूलनिवासियों के प्रश्न पर चहुंओर चुप्पी थी. अचानक एक आदमी उठ खड़ा होता है. काफी संजीदगी लेकिन बुलंद आवाज में कहता है, “ मैं भूला दिए गए उन हजारों योद्धाओं की ओर से बोल रहा हूँ जो आजादी की लड़ाई में आगे रहे. लेकिन उनकी कोई पहचान नहीं है. देश के इन्हीं मूल निवासियों को पिछड़ी जनजाति, आदिम जनजाति, जंगली, अपराधी कहा जाता है. श्रीमान मैं बताना चाहता हूँ कि मुझे जंगली होने पर गर्व है. इस देश के अपने हिस्से में हम इसी नाम से पुकारे जाते हैं. मुझे यह समझ नहीं आता कि आदिवासियों के हक में प्रस्ताव पास करने में क्या समस्या आ रही है? आप आदिवासियों को लोकतांत्रिक मूल्य नहीं सिखा सकते. बल्कि आप लोगों को उनसे लोकतांत्रिक परंपराए सीखनी चाहिए. वे इस धरती पर सबसे ज्यादा लोकतांत्रिक निवासी हैं.”
संविधान सभा में आदिवासी प्रश्नों पर सबसे प्रखर होकर बोल रहे इस व्यक्ति का नाम जयपाल सिंह मुंडा है. इनकी पैदाइश बिरसा मुंडा के देहांत के करीब तीन साल बाद 3 जनवरी 1903 को झारखंड के रांची जिले के खूंटी अनुमंडल में हुई. बिरसा मुंडा भी इसी इलाके से थे. जयपाल को विद्रोह बिरसा से विरासत में मिला था. बिरसा के नेतृत्व में 1895-1900 के बीच उलगुलान हुआ था जिसे महान विद्रोह भी कहते हैं. आदिवासियों का यह विद्रोह उनके जल, जंगल, जमीन पर बाहरी लोगों के कब्जे के खिलाफ था. इससे पहले 1855 में भी संधालों ने बाहरी लोगों के खिलाफ विद्रोह किया था. इसकी वजह बाहरी लोगों को आदिवासियों के साथ छल-कपट, बेईमानी और सदियों से चला आ रहा शोषण था. अब भी आदिवासी बाहरी लोगों को लेकर भरोसा नहीं रखते हैं.
जयपाल सिंह मुंडा अपनी स्कूली शिक्षा के बाद सेंट पॉल के प्रधानाचार्य के संरक्षण में उच्च शिक्षा के लिए ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय चले गए. वहां जा कर उन्होंने अर्थशास्त्र में बीए किया. उनका हॉकी खेल से लगाव पहले से ही था. ऑक्सफोर्ड में आ कर जल्दी ही उन्होंने अपनी क्षमता का लोहा मनवा लिया और विश्वविद्यालय की टीम में शामिल हो गए. इस खेल में उनका प्रदर्शन इतना शानदार रहा था कि 1928 में नीदरलैंड में हुए ओलंपिक के लिए उन्होंने भारतीय कप्तान के रूप में नेतृत्व किया. बीए पास करने के बाद उन्होंने आईसीएस की परीक्षा पास की लेकिन उन्होंने नौकरी छोड़ दी.
हॉकी के प्रति दीवानगी के चलते जब उनके सामने हॉकी और आईसीएस की नौकरी में से एक चुनने का सवाल खड़ा हुआ तो उन्होंने हॉकी को चुना. जयपाल की कप्तानी में भारतीय हॉकी टीम ने ओलंपिक में स्वर्ण पदक हासिल किया.
जयपाल मुंडा अपने आदिम लोगों के हक के लिए हमेशा आवाज बुलंद करते रहे. उनका कहना था, हमारे लोगों के साथ दुर्व्यवहार हो रहा है, उनका निरादार हो रहा है…पिछले 6000 साल से लगातार शोषण हो रहा है…यह कब और कैसे शुरू हुआ…आदिवासी लोगों के उपेक्षा और अपमान के लिए ये जिम्मेदार लोग कौन हैं?