बिना अंतरराष्ट्रीय मदद ताइनाव ने लड़ी कोरोना के खिलाफ जंग
संसाधनों के अभाव में कोरोना वायरस से निपटने वाला ताइवान आज विश्वभर के लिए प्रेरणा बन गया है. चीन के दबाव में उसे विश्व स्वास्थ्य संगठन समेत किसी भी अंतरराष्ट्रीय समूह से मदद नहीं मिली इसके बावजूद ये देश अपनी इच्छा शक्ति के बल पर आज एक अधिक मजबूत राष्ट्र के रूप में उभरा है.
ताइवान एक लोकतंत्र है जिस पर चीन अपना दावा करता रहा है. हालांकि ताइवान इससे इनकार करता आया है.
पहले तो ताइवान को हफ्तों तक वुहान में फंसे अपने नागरिकों को निकलाने के लिए संघर्ष करना पड़ा, चीन ने भेजे गए विमान में ताइवान के चिकित्सा कर्मियों की मौजूदगी से इनकार कर दिया था. इसके बाद लगभग उसी समय, पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना ने ताइवान के चारों ओर बमवर्षक और लड़ाकू जेट छोड़ दिए, जिसके बाद राष्ट्रपति हरकत में आईं और युद्धक विमानों से चीन के विमान को खदेड़ दिया.
इन सभी चुनौतियों के बावजूद ताइवान की दो करोड़ 30 लाख की जनता में कोरोना के कुल 400 मामले सामने आए जिसमें से छह लोग की मौत हुई. जबकि अमेरिका में न्यू यॉर्क जैसे शहर में कोरोना के तीन लाख मामले सामने आए हैं और 22 हजार से अधिक लोगों की मौत हुई है.
ताइवान ने दुनिया को बताया है कि तानाशाह पूर्ण फैसलों को थोपे बिना भी लोकतंत्र वायरस से निपट सकते हैं. ताइवान ने ना केवल चीन को जवाब दिया है बल्कि अपनी ताकत का दंभ भरने वाले पश्चिम को भी इससे सबब मिला है.
स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के हूवर इंस्टीट्यूशन में इंडो-पैसिफिक में ताइवान पर प्रोजेक्ट के सलाहकार खारिस तेमपलीमान ने अंग्रेजी अखबार द इंडियन एक्स्प्रेस से कहा कि “तायनामेन चौक नरसंहार के बाद मुझे ऐसा कोई किस्सा याद नहीं जो वैश्विक स्तर पर इतना महत्तवपूर्ण हो और जो ताइवान के राहत भरी खबर लाया और चीन के लिए एक बुरा अनुभव बन गया.”
उन्होंने कहा, “इससे ताइवान का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान बढ़ा है. ताइवान बरसों से चीन की अपारदर्शिता और प्रोपेगैंडा का सामना कर रहा है. तो जाहिर तौर पर इसके बाद ताइवान के लिए सहानुभूति बढ़ी है.”
वहीं ट्रंप प्रशासन के वरिष्ठ स्वास्थ्य अधिकारी और ताइवान के स्वास्थ्य मंत्री के बीच इस हफ्ते बातचीत हुई, जो अमेरिका और चीन के बीच तनाव का कारण बन गई है.
वॉशिंगटन में ताइवान के लिए समर्थन उस समय बढ़ गया जब 2016 में ट्रंप ने देश की राष्ट्रपति त्साइ इंग वेन से फोन पर बात की. इसी दौरान ट्रंप ने शी जिंनपिंग सरकार के खिलाफ व्यापार युद्ध छेड़ दिया और ताइवान को प्रतिष्ठित एफ-16 विमानों की बिक्री की.
कोरोना वायरस के प्रकोप के बीच चीन ने उस अमेरिकी कानून की निंदा की है, जिसका मकसद ताइवान की अंतरराष्ट्रीय भूमिका को सुदृढ़ करना है. चीन विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गेंग शुआंग ने चीनी राजधानी में ब्रीफिंग के दौरान कहा कि हम अमेरिका से आग्रह करते हैं कि वह ताइवान में दखल देना बंद करे. चीन ने एक बार फिर वही तर्क दोहराया कि ताइवना उसका आंतरिक मामला है. इसलिए वह किसी देश का हस्तक्षेप नहीं स्वीकार करेगा. इस बीच चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अमेरिकी राष्ट्रपति अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से फोन पर बात की.
बीते साल शी ने एक बार फिर दोहराया था कि बीजिंग हांगकांग की ही तरह एक देश दो नीति के तले ताइवान पर भी शासन करना चाहता है. हालांकि ताइवान इससे हमेशा से इनकार करता आया है.
त्साइ इंग वे जनवरी में ताइवान की प्रथम महिला राष्ट्रपति निर्वाचित हुई. इन्होंने 16 जनवरी, 2016 के राष्ट्रपति चुनाव में ऐतिहासिक विजय हासिल की. डेमोक्रेटिव प्रोग्रेसिव पार्टी ताइवान को एक संप्रभु और स्वतंत्र राष्ट्र के तौर पर देखती है.
पार्टी के प्रमुख नीति निर्माता वेंग तिंग-यू ने कहा, “हमने ना केवल वायरस को रोकने की अपनी क्षमता को दिखाया है बल्कि ये साबित किया कि लोकतंत्र के सहारे इसे फैलने से कैसे रोक सकते हैं. वायरस के खिलाफ इस लड़ाई में सरकार और लोगों ने साथ मिलकर काम किया. हमने लोगों के साथ संपर्क बैठया. ये संदेश दुनिया के लिए प्रेरणा बन सकता है.”
ताइवान ने वायरस से निपटने के लिए बड़ी संख्या में टेस्टिंग की. डेर सारा डेटा इकट्ठा किया और नए तकनीक का सहारा लिया. ताइवान ने शुरू से ही फ्लाइट्स से आ रहे लोगों की स्क्रीनिंग शुरू कर दी थी. वहीं संभावित मामलों का पता लगाने और उन्होंने आइसोलेट करने में भी तेजी दिखाई. लोगों को क्वारंटाइन करने के लिए मोबाइल फोन ट्रैकिंग का सहारा लिया गया. सरकार ने इस दौरान तेजी दिखाते हुए स्वास्थ्य के क्षेत्र में करीबन 120 जरूरी फैसले किए.
ताइवान के पास किसी भी तरह की गलती करने के गुंजाइस यूं भी कम थी क्योंकि वो अंतरराष्ट्रीय समूहों से मदद नहीं मांग सकता वहीं किसी भी गलती का मतलब है चीन की निशाने पर आ जाना.